"अकेला दीवाना"

"स्वर्ण कलश ज़हरीला है, मिटटी के अंदर पानी है,
प्यास बुझाने रेगिस्तान में जाना तो नादानी है!"


इतिहास लिखने के लिए पन्ने कब से लगने लगे?
मैंने तो इतिहासों को दिल पर छपते देखा है।
लाखों की भीड़ जमा करके तुम क्या इतिहास बनाओगे?
मैंने दीवाने अकेले को इतिहास बदलते देखा है।

एक दिन सूरज जल-जल कर ख़ाक हो जाएगा,
उस दिन चंद्र को अपना अस्तित्व समझ में आएगा।
क्यों सवेरा होने के लिए सूरज की राह देखते हो?
मैंने अँधेरे में दिया जलाकर इंसान जागते देखा है।

स्वर्ण कलश ज़हरीला है, मिटटी के अंदर पानी है,
प्यास बुझाने रेगिस्तान में जाना तो नादानी है!
क्यों कुबेर की माला जपने में व्यर्थ समय गँवाते हो?
मैंने तो सुदामा को भी हर्ष मुद्रा में देखा है।

कुछ कहते हैं मेरी मंज़िल मुझसे छूट गयी।
कुछ कहते हैं मेरी राहें मुझसे ही पीछे छूट गयीं।
क्यों बैठे हो उदास चिंतित तुम राहों की खोज में?
मैंने तो वीरों को बस उनके इरादों पर चलते देखा है।

हाथों में हाथ थामकर लड़ना है अपराधों से,
कुछ न होगा देश का, सिर्फ देशभक्ति की बातों से।
उपहासों का मज़ाक बनाकर, निशिन्त राहों चलना है,
जो अँधेरे में प्रकाश फैलादे, हर वो काम करना है।

मैं तो अलख जगा दूंगा, मैं एक दिशा दिखा दूंगा,
पर चलना तेरा काम है, तू हर मुश्किल से लड़ लेना।
मैं तो दीप जला दूंगा, तू जग उजियारा कर देना,
तू हर मुश्किल से लड़ लेना, तू हर मुश्किल से लड़ लेना।

- गौतम 

Comments

Post a Comment

Popular Posts