पाँव, मिठाई और कागज़ (एक)
पाँव, मिठाई और कागज़
(कविता का विषय मानसी जैन द्वारा सुझाया गया)
पाँव में चीरा लगेगा,
तरक़ीब दी हुक्काम ने
जेब में चूना लगेगा,
नकार दी घनश्याम ने
हल्दियों के, बूटियों के,
लेप सारे मल दिए
राम-राम कह के सारे
गाँव वाले चल दिए
रात दर्द ज्यों उठा तो
मुँह पे पट्टी बाँध ली,
प्रिय की निद्रा में दुष्ट
कैसे करता धांधली !
बेटी के ससुराल में सुबह
भेज दी सारी कमाई,
एक आना जो बचा तो
बंधवा ली थोड़ी मिठाई
छाला फूटा, घाव पीले
आम जैसा पक गया
फैला ऐसे, जैसे कोई
बाघ हो लपक गया
पाँव छूटा, हाथ छूटे,
जान पूरी ढह गयी
एक बची थी झोपडी जो,
कागज़ों में रह गयी
- गौतम

proud !! bht pyara ikha h
ReplyDelete