वृक्ष

एक वृक्ष की यह कहानी अद्भुत है


बरसों से मिट्टी ने उसको बाँधा था,
उसने हमेशा बाहर निकलना चाहा था।
फिर एक दिन उसको खुशियों की एक आस दिखी,
जब एक कुल्हाड़ी उसको अपने पास दिखी।

लकड़हारे ने झट से उसको काट दिया,
वृक्ष उत्सुक था, जब उसको 'दो' टुकड़ों में बाँट दिया।
फिर उनको एक गट्ठर में लादा गया,
उनके जैसे औरों के संग बांधा गया।

दोनों में से एक रात को जाग गया,
गठ्ठर से फिसलकर दूर भाग गया।
दूसरे ने लालच, डर और रौब दिखाया,
पर पहला टुकड़ा लौट के वापस ना आया।
बाकी सारे शहर की ओर निकल पड़े,
ये देखता रहा उनको थोड़ी दूर खड़े। 

उस टुकड़े का कारीगर ने भारी मोल लगाया,
इस अकेले टुकड़े को, एक मछुआरा घर ले आया।
उस टुकड़े को बड़ी मशीनों ने तराशा,
कुर्सी बनाई, जिसमे न था झोल जरा सा।
इस टुकड़े पर बेरहमी से पड़ी कुल्हाड़ी,
मछुआरे ने दो दिन में एक नाँव बना ली।

अब घर पे बैठी कुर्सी घर पे रहती है,
और नदी को चीर नाँव रोज़ ही बहती है।

- गौतम 

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