वज़ूद, दोष और बहाने
वज़ूद, दोष और बहाने,
तीनो हैं मेरे सिरहाने
आँखों में घुस के मेरी सच चीखता है,
क्यों नहीं हर चोट से तू सीखता है?
और मैं कहता हूँ उसको, न सताने ।
वज़ूद, दोष और बहाने ।
कहता है वज़ूद मुझसे, क्यों तू बाग़ी है ?
मुश्किलों से डर के हिम्मत क्यों ये भागी है?
दरकिनार कर देता हूँ मैं उसको क्यों? न जाने ।
वज़ूद, दोष और बहाने ।
दोष भी करता है मुझसे बातें अक्सर,
की मुझको अपना ले, ठुकराने की तू गलती न कर,
और मैं लगता हूँ उससे नज़रें चुराने ।
वज़ूद, दोष और बहाने ।
और बहाने कहते हैं, मैं साथ तो हूँ!
की वो सब देख लेंगे, मैं भार न लूँ ।
की वो सब देख लेंगे, मैं भार न लूँ ।
और मैं लगता हूँ उनको थपथपाने ।
वज़ूद, दोष और बहाने ।
-गौतम

Bahut khub :) (Y)
ReplyDeleteThank you :)
Delete