वज़ूद, दोष और बहाने

वज़ूद, दोष और बहाने,
तीनो हैं मेरे सिरहाने
आंसू किस पर बहाऊँ ?


आँखों में घुस के मेरी सच चीखता है,
क्यों नहीं हर चोट से तू सीखता है?
और मैं कहता हूँ उसको, न सताने ।

वज़ूद, दोष और बहाने ।

कहता है वज़ूद मुझसे, क्यों तू बाग़ी है ?
मुश्किलों से डर के हिम्मत क्यों ये भागी है?
 दरकिनार कर देता हूँ मैं उसको क्यों? न जाने ।

वज़ूद, दोष और बहाने ।

दोष भी करता है मुझसे बातें अक्सर,
की मुझको अपना ले, ठुकराने की तू गलती न  कर,
और मैं लगता हूँ उससे नज़रें चुराने ।

वज़ूद, दोष और बहाने ।

और बहाने कहते हैं, मैं साथ तो हूँ!
की वो सब देख लेंगे, मैं भार न लूँ ।
और मैं लगता हूँ उनको थपथपाने ।

वज़ूद, दोष और बहाने ।


-गौतम 

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