गुस्ताख़ दिल !
सुलझे धागों में उलझा है क्यों !
सलाहे सलाहे ये ख़ुद की भी सुनता नहीं
गुस्ताख़ दिल !
शायद सुलझे धागों में उलझा हूँ
क्योंकि सलाहे-सलाहे ये ख़ुद की भी सुनता नहीं ,
गुस्ताख़ दिल !
-गौतम
दर्द के दर पर ठहरा है क्यों
सज़ाएं-सज़ाएं ये खुद को क्यों देता नहीं !
हँसने की धुन में रोता है क्यों ?
सही क्या गलत क्या, ये कुछ समझता नहीं,
गुस्ताख़ दिल !
- वृषभ (गीत: गुस्ताख़ दिल, इंग्लिश - विंग्लिश )
दर्द के दर या पड़ाव ख़ुशियों के ,
ये खुद में संजोता नहीं
हँसने की धुन या गीत आंसुओं के
ये सुर में पिरोता नहीं ,
बस मंज़िल है, राहें हैं
नज़रों के आगे
टूट कर भी हौंसला खोता नहीं ,
गुस्ताख़ दिल !
ये हर पल क्यों खेले ग़म का, ख़ुशी का जुआ-जुआ !
ये उम्मीदों से भरा पर खुद से है डरा-डरा
गिरता नहीं तो संभालता है क्यों ?
झुकाए,झुकाए, मगर ये खुद झुकता नहीं,
गुस्ताख़ दिल !
अपनों की ख़ुशी से है भरा-भरा
एक आस लेकर राहों में अकेला चला
बेवजह तोड़ रहा साँसें
और फिर खुद को जोड़ रहा ,
ये खोज में है उसकी जो उसे मिला नहीं ,
गुस्ताख़ दिल !

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