एक तू ही तो है


बात-बात में,
आस-पास में
जिद-विद के पीछे लिबास में,
उत्सुकता में,
आनन्-फानन
मौके-इत्तेफ़ाक़ के कारण
नज़रान्दाज़ी,
शौक-वौक में
कटती राहों के बीच चौक में
हंसने-रोने के हिसाब में
ओढ़े हुए एक हिजाब में
घर के अंदर,
बाज़ारों में
तेज़ धूप में,
अंधियारों में
रस्में-वस्में,
सूझ-बूझ में
जैसे-तैसे,
जानबूझ में
धोख़े से तुझसे मिल बैठे
तो धोखों को भी सच्चा करने
बिखरे को भी अच्छा करने
मेरा जो हिस्सा है वो
एक तू ही तो है,
एक तू ही तो है...

- गौतम

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